अहंकार.. स्वाहा !
संपादकीय - कहते हैं सावन का महीना रूठे हुओं को मनाने का होता है । सम्पादक तो हमेशा दिल तोड़ने का ही काम करता है। वह एक बार जोड़ भी ले तो फिर टूटने का ख़तरा मँडराता है। मेरी स्थिति तो साँप-छछूदर जैसी है।न निगलते बनता है, न उगलते बन…